क्यों टीके के बाद भी चिंता बनी हुई है
देश के कई राज्यों में कोरोना संक्रमण एक बार फिर फैल रहा है. ये देखकर दोबारा लॉकडाउन जैसी चर्चाएं होने लगीं. हालांकि देश में कोरोना का स्वदेशी टीका तो आ चुका है लेकिन इससे चिंता कम नहीं हो पा रही. इसके पीछे है बड़ी आबादी और टीकाकरण की रफ्तार. जल्द से जल्द टीकाकरण करने पर भी आबादी में रोग-प्रतिरोधक क्षमता आ सकेगी लेकिन मौजूदा रफ्तार से ये संभव नहीं दिख रहा.
बता दें कि 19 फरवरी तक देश में 1 करोड़ लोगों को वैक्सीन मिल चुकी है. इसके बाद भी और तेजी से लिए टीकाकरण में निजी कंपनियों को जोड़ने की बात हो रही है.

टीकाकरण के बाद चूंकि बड़ी आबादी बीमारी से बची रहेगी तो बीमार के संपर्क में आने पर भी बीमारी फैल नहीं सकेगी- सांकेतिक फोटो
इस जल्दबाजी के पीछे हर्ड इम्युनिटी का विचार है
दरअसल अगर कोई बीमारी आबादी के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी के संक्रमण को बढ़ने से रोकने में मदद करती है. जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं. उनमें वायरस का मुकाबला करने को लेकर सक्षम एंटीबॉडी तैयार हो जाते हैं.
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यही बात वैक्सीन के लिए भी लागू होती है
टीकाकरण के बाद चूंकि बड़ी आबादी बीमारी से बची रहेगी तो बीमार के संपर्क में आने पर भी बीमारी फैल नहीं सकेगी. इससे धीरे-धीरे वायरस का हमला खुद ही कम होते हुए खत्म हो जाएगा. जैसा कि टीकाकरण कर रहे दूसरे देशों में हो रहा है. इसपर पब्लिक हेल्थ स्कॉटलैंड ने एक रिसर्च की और शानदार नतीजे देखे.
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किन लोगों ने, किनपर की स्टडी
स्टडी में वे लोग शामिल किए गए, जिन्हें वैक्सीन लिए 4 हफ्ते हो चुके थे. इसमें दिखा कि जिन लोगों ने फाइजर वैक्सीन ली थी, उस देश में बीमारों के गंभीर होकर अस्पताल में भर्ती होने का प्रतिशत तेजी से घटा. यहां तक कि 80 साल या उससे ऊपर के लोगों में भी अस्पताल में भर्ती होने की दर में गिरावट आई. स्टडी में एडिनबरा यूनिवर्सिटी, ग्लासगो, एबरडीन और सेंट एंड्रूयूज शामिल हुए थे और इसके तहत 1.14 मिलियन डोज दिए जाने के बाद परीक्षण हुआ.यही ट्रेंड इजरायल में भी दिखा. वहां वैक्सीन की दूसरी डोज दिए जाने के बाद कोरोना संक्रमण की दर गिरी.

देश के कई राज्यों में कोरोना संक्रमण एक बार फिर फैल रहा है सांकेतिक फोटो (pixabay)
देश में चरणों में दिया जा रहा टीका
इससे साफ हो जाता है कि संक्रमण से राहत पाकर दोबारा पुरानी दुनिया पाने के लिए जल्दी से जल्दी टीकाकरण कितना जरूरी है. भारत में फिलहाल वैक्सिनेशन प्रोग्राम सरकार के हाथ में है. तय हुआ है कि कई चरणों में टीकाकरण होगा. फिलहाल हेल्थ वर्कर्स को टीका दिया जा रहा है. इसके बाद 50 या इससे ऊपर के आयुवर्ग या उन लोगों को वैक्सीन मिलेगी, जिनको कोई क्रॉनिक बीमारी है.
टीकाकरण प्रक्रिया तेज तो है लेकिन आबादी के लिहाज से इसमें और रफ्तार की जरूरत देखते हुए निजी सेक्टर भी इसमें जुड़ना चाह रहे हैं. वैसे भी देश में सरकारी के अलावा निजी अस्पताल भी स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाते आए हैं. तो फिलहाल यही बात है कि टीकाकरण के क्षेत्र में वे कब आएंगे. आना तो तय है.
रोडमैप बनाने की जरूरत
निजी कंपनियां भी टीकाकरण में प्रवेश करें, इसके लिए पक्का रोडमैप तैयार करने की जरूरत है. सबसे पहले तो ये सुनिश्चित करना होगा कि बिना भेदभाव सबको टीका मिल सके. इसके अलावा सरकार को सप्लाई चेन को भी देखना होगा. कहीं ऐसा न हो कि अनियमितता के कारण टीकाकरण पूरी तरह से प्राइवेट कंपनियों के हाथ में चला जाए. साथ ही साथ सरकारी और निजी दोनों सेक्टरों को टीके के असर और साइड इफैक्ट पर बराबरी का ध्यान देना होगा.

निजी कंपनियां भी टीकाकरण में प्रवेश करें, इसके लिए पक्का रोडमैप तैयार करने की जरूरत है- सांकेतिक फोटो (pixabay)
चार्ज क्या हो सकता है
फिलहाल निजी सेक्टरों की मदद से टीकाकरण पर प्रस्ताव भी दिया जा रहा है. अनुमान है कि एक टीके का खरीदी मूल्य 300 रुपए और लगभग 100 रुपए उसे लगाने का चार्ज हो सकता है. लेकिन लगाने के मूल्य पर ही मुश्किल हो सकती है. कई निजी अस्पतालों में एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज काफी ज्यादा होता है तो क्या वे 100 रुपए पर तैयार हो सकेंगे, ये भी देखना होगा.
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क्या मनचाहा टीका चुनने की छूट मिलेगी
निजी सेक्टरों को अलग टीकाकरण की इजाजत दे दी जाए तो वे अपने अनुसार भी टीके का चुनाव करेंगे. जैसे अब देश में रूस का स्पूतनिक वी और दूसरे विदेशी टीके भी आ सकते हैं. तो अगर प्राइवेट सेक्टर भी टीकाकरण करेंगे तो क्या वे अपने मुताबिक टीके का चुनाव करेंगे या फिर स्वदेशी टीका ही लेंगे, इसपर भी बात होनी बाकी है.