वैभव बताते हैं कि उनके पिता घर में कमाई करने वाले इकलौते व्यक्ति थे और वो सहारनपुर में ही ‘कमला स्टोर’ के नाम से किराना स्टोर चलाते थे. 2013 में इंजीनियरिंग पूरा करने के बाद वैभव ने कुछ महीने अपने पिता के साथ स्टोर पर ही काम किया और इसके बाद कैम्पस प्लेटसमेंट के जरिए मैसूर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करना शुरू कर दिया. मैसूर के रिटेल मार्केट का अनुभव उनके लिए बिल्कुल नया साबित हुआ. काम के सिलसिले में यहां रहने वाले वैभव ने पाया कि यहां स्मार्ट स्टोर्स हैं. इन स्टोर्स को प्रोडक्ट मिक्स और चेन सिस्टम बहुत अलग है.
मल्टीनेशन कंपनी छोड़कर 10 हजार रुपये सैलरी वाली नौकरी की
इन स्टोर्स पर ही खरीदारी करने के बाद उन्हें आइडिया आया कि वो कैसे अपने पिता का स्टोर बेहतर कर सकते हैं. करीब एक साल तक इन स्टोर्स के बारे में जानने और कुछ सोच-विचार के बाद वैभव ने अपनी नौकरी छोड़ दी. 2014 में उन्होंने सहारनपुर में ही एक रिटेल कंपनी में 10,000 रुपये की सैलरी पर सेल्स मैनेजर बन गए. वैभव कहते हैं कि इस दौरान उन्होंने रिटेल मार्केट के लॉजिस्टिक्स से लेकर यह तक समझा कि इनका प्रोडक्ट मिक्स कैसे जगह और दूरी के साथ बदलता है. उन्होंने पाया कि हर 1 किलोमीटर की दूरी पर प्रोडक्ट मिक्स बदल जाता है. यहां तक की प्रेजेन्टेशन और पैकेजिंग तक में अंतर होता है. ये सब देखने के बाद वैभव के दिमा में कई तरह के बिज़नेस आइडिया आने लगे, लेकिन वो एक बार फिर नौकरी छोड़ने के मूड में नहीं थे.
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पढ़ाई और काम का अनुभव से सीखीं रिटेल स्टोर की बारिकियां
2014-15 के दौर में स्टार्टअप इंडस्ट्री में तेजी तो थी लेकिन उन्हें इसे बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी. कॉन्सेप्ट को समझने के लिए उन्होंने दिल्ली में बिज़नेस मैनेजमेंट में मास्टर्स करने का फैसला किया. यहां एकेडेमिक्स और फैकल्टी की मदद से उन्हें अपने आइडिया को आकार देने में मदद मिली. वो ग्रॉसरी रिटेल मार्केट और असंगठित क्षेत्र से जुड़े होने से कई अन्य मामलों के बारे में जान सके. मास्टर्स डिग्री पूरी करने के बाद 2017 में उन्होंने दिल्ली की ही एक एफएमसीजी कंपनी में काम शुरू किया. इस नौकरी से उन्हें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत 6 राज्यों में रिटेल मार्केट के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने प्रोडक्ट फ्लो की एक हर छोटी बात को बारीकी से समझा और रिपोर्ट्स तैयार किया.
सबसे पहले पिता के स्टोर का किया कायाकल्प
वैभव ने एक साल के अंदर इस नौकरी को छोड़कर अपने पिता के ग्रॉसरी स्टोर में ही बदलाव लाने का फैसला किया. 2018 तक उन्होंने इस स्टोर में कई बदलाव किए. उन्होंने इस स्टोर में प्रोडक्ट्स को रखने का तरीका बदला, प्रोडक्ट की बिक्री और उनके इनवेन्टरी मैनेजमेंट के बारे में जानकारी जुटाने के लिए सॉफ्टवेयर भी तैयार किया. स्टोर से उन्होंने उन प्रोडक्ट्स को हटाया जिनकी कम बिक्री की वजह से घाटा हो रहा था और स्टोर में सभी प्रोडक्ट्स ऐसे रखे ताकि उनपर ग्राहकों का ध्यान जाए. इस प्रकार उनके यहां ग्राहकों की संख्या और उनके खर्च करने की क्षमता बढ़ी.
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छोटे शहरों में 100 स्टोर्स की बदली तकदीर
वर्ड-टू-माउथ के जरिए उनके स्टोर में यह बदलाव लोगों तक पहुंचा. इस प्रकार एक व्यक्ति ने उनके स्टोर को देखने के बाद अपना स्टोर भी इसी तरह बदलने का अनुरोध किया. डिजिटल मार्केटिंग के जरिए थोड़ा और जोर लगाने के बाद कुछ और लोगों ने उनसे अपना स्टोर बदलने की मांग की. इस प्रकार वैभव ने अपना स्टार्टअप लॉन्च किया. वैभव बताते हैं कि जनवरी 2021 तक उन्होंने करीब 12 शहरों में 100 से ज्यादा स्टोर की तस्वीर बदली है. इनमें से अधिकतर टियर-II और टियर-III शहरों के हैं. अपने अनुभव को लेकर बताते हैं कि ग्रॉसरी बिज़नेस में लोग बदलाव करने को तैयार हैं, लेकिन उन्हें ऐसी सर्विसेज नहीं मिलती है जिसके जरिए उन्हें गाइडेंस मिल सके. अधिकतर ग्रॉसरी स्टोर दादा या पिता के दौर से चली आ रही हैं. उन्होंने समय और बदलते बाजार के साथ बदलाव नहीं किया है.
नये स्टोर को भी खड़ा करने काम करता है ये स्टार्टअप
वैभव का स्टार्टअप ने सिर्फ पुराने स्टोर को बदलाव लाने का काम करता है, बल्कि किसी नये स्टोर को बिल्कुल शुरू से खड़ा करने में भी मदद करता है. इस स्टार्टअप की मदद से ग्राहकों को कुछ प्रोडक्ट्स लेने की भी सुविधा होती है. फीस के अलावा सॉफ्टवेयर और एनलिटिक्स के लिए हर स्टोर से वो 1,000 रुपये प्रति महीना चार्ज करते हैं. एनलिटिक्स रिपोर्ट को हर 15 दिन में जारी किया जाता है ताकि दुकानदार अपनी दुकान में जरूरी बदलाव कर सके. इससे इनवेन्टरी मैनेज करने के अलावा बिज़नेस को भी बूस्ट करने में मदद मिलती है.
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क्या है इस स्टार्टअप की सबसे बड़ी चुनौती
वित्त वर्ष 2019-20 में इस स्टार्टअप ने 1 करोड़ रुपये का रेवेन्यू खड़ा किया है. मार्च 2020-21 तक इसके बढ़कर 5 करोड़ रुपये तक होने का अनुमान है. वैभव आगे बताते हैं कि उनके बिज़नेस का सबसे मुश्किल काम यह होता है कि ग्राहकों को कैसे इस बात के लिए तैयार किया जाए कि उनके स्टोर में बदलाव करने जरूरत है. उन्हें इस बदलाव करने से मुनाफे के बारे में जानकारी देनी होती है. इसके अलावा ग्राहकों को इस पर होने वाले खर्च के बारे में भी समझाना होता है. इस स्टार्टअप ने 7 लाख रुपये से लेकर 30 लाख रुपये के बीच में कई स्टोर्स में बदलाव किया है. इसमें उन्हें 6 महीने से लेकर 1 साल का समय लगता है.